Tuesday 5 May 2015

मेट्रो के भीतर खाना-पानी मना है

मेट्रो के भीतर बेंच पर राइट साइड में दो बहनें बैठी हुई थी। बड़ी बहन शादीशुदा थी तकरीब 28-30 के आसपास। छोटीवाली 20-22 के आसपास। छोटी बहन ने खाने के लिए बैग से डब्बा निकाला। डब्बा खोला और बैग के ऊपर रखकर पराठा और सब्जी खाने लगी। उसके हाथ से थोड़ी सी सब्जी बैग पर गिर गई। बड़ी बहन ने गिरी हुई सब्जी उठाई और फर्श पर फेंक दिया। लोग देखते रहे। मेट्रो के भोंपू से महिला और पुरुष की मधुर आवाज गूंज रही थी "मेट्रो के भीतर खाना-पीना और धुम्रपान सख्त मना है"।

Monday 27 April 2015

खेद है!


मैं जब उत्तम नगर ईस्ट मेट्रो स्टेशन पहुंचा तो देखा प्लेटफॉर्म काफी भीड़ लगी हुई थी। बताया जा रहा था कि तकनीकि खराबी के कारण देर से आएगी मेट्रो। डिस्प्ले बोर्ड बता रहा था कि वैशाली की मेट्रो 4 मिनट बाद आएगी। मुझे नोएडा जाना होता है, इसलिए साइड में खड़ा हो गया। हालांकि बीच-बीच में खेद जताने की औपचारिकता भी हो रही थी

घड़ी की सूई बढ़ती जा रही थी। तकरीबन 13 मिनट बीत गए। तब तक डिस्प्ले बोर्ड पर वही लिखा हुआ था कि वैशाली की मेट्रो 4 मिनट बाद आएगी। इधर खेद जताने की औपचारिकता भी खत्म हो गई थी। प्लेटफॉर्म पर भीड़ बढ़ती जा रही थी। 17 मिनट बाद वैशाली के लिए मेट्रो आई।

मैं इंतजार करता रहा। इसके बाद 2 मेट्रो 3 और 2 मिनट के अंतराल पर निकल गई। जो वैशाली के लिए थी। आखिर कार नोएडा के लिए मेट्रो आने का एनाउंस हुआ। डिस्प्ले बोर्ड पर लिखा हुआ था कि एक मिनट के बाद नोएडा जाने वाली मेट्रो आएगी। जो तकरीबन 8 मिनट के बाद प्लेटफॉर्म पर आई। दफ्तर के लिए देर तो हो ही गया था। खैर। रजौरी गार्डन पहुंचने के बाद कड़कती हुई आवाज में खेद के साथ घोषणा हुई कि ये मेट्रो नोएडा नहीं वैशाली जाएगी।

क्या करता। यमुना बैंक स्टेशन पर उतर गया। नोएडा जान के लिए आनेवाली मेट्रो का इंतजार करने के लिए। 

वो मेट्रो वाली आंटी

तबीयत थोड़ी नासाज थी। संयोग से मेट्रो में दाखिल होते ही सीट मिल गई। अमूमन ऐसा होता नहीं है। लेकिन उस दिन संयोग अच्छा था। मैं सीट पर बैठा हुआ था। एक महिला अपनी 18-20 साल की बेटी और बेटे के साथ मेट्रो में चढ़ी। मेरे सामने आकर बैठ गई। इधर-उधर ताकने के बाद बोली-बेटा मुझे बैठने दो। प्लीज। मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही है। बेटा प्लीज।

क्या करता। संस्कार भारी पड़ गया। मैं उठ गया। वो बैठ गई। मैं उसके सामने खड़ा हो गया। तिलक नगर स्टेशन पर महिला की बगल वाली सीट खाली हुई। उसने तुंरत अपनी बेटी को वहां बैठने के लिए कह दिया। लड़की भी झट से बैठ गई। मैं सामने खड़ा था। खैर। टैगोर गार्डन आते-आते  उस लड़की की बगल वाली सीट खाली हुई। अचानक वो महिला एक्शन में आई। बेटी को बोली तुम जरा खिसक जाओ। खुद भी सरक गई। और अपनी सीट पर, जो मुझसे कुछ देर पहले उसने मांगा था, उस पर अपने बेटे को बैठा दिया। मैं ताकता ही रह गया। सामने खड़ा रहा।

 मेट्रो चलती रही। मैं कभी उस महिला को तो कभी उसकी बेटी को और कभी उसके बेटे को देखता रहा।
तब तक राजीव चौक मेट्रो स्टेशन आ चुका था। हंसते हुए तीनों निकल गए।